भारत का करंट अकाउंट डेफिसिट (CAD) यानी चालू खाता घाटा वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में मामूली रूप से बढ़कर 9.7 बिलियन डॉलर हो गया है, यह GDP का 1.1% है। यह वित्त वर्ष 2023-24 की अप्रैल-जून तिमाही में 8.9 बिलियन डॉलर (GDP का 1.0%) था। वहीं, वित्त वर्ष 2023-24 की चौथी तिमाही में 4.6 बिलियन डॉलर (GDP का 0.5%) का सरप्लस था। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 30 सितंबर को ये आंकड़े जारी किए हैं। RBI ने कहा कि सालाना आधार पर CAD में ग्रोथ से मर्चेंडाइज ट्रेड डेफिसिट में वृद्धि के कारण हुई। यह वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में 65.1 बिलियन डॉलर डॉलर हो गया, जो वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में 56.7 बिलियन डॉलर था। फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व में 5.2 बिलियन डॉलर की ग्रोथ फाइनेंशियल अकाउंट में नेट फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट इनफ्लो वित्त वर्ष 2025 की पहली तिमाही में बढ़कर 6.3 बिलियन डॉलर हो गया, जो 2023-24 की इसी अवधि में 4.7 बिलियन डॉलर था। वित्त वर्ष 2024-25 की पहली तिमाही में फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व (BoP आधार पर) में 5.2 बिलियन डॉलर की ग्रोथ हुई, जबकि वित्त वर्ष 2024 की पहली तिमाही में यह 24.4 बिलियन डॉलर था। नेट इनफ्लो पहली तिमाही में घटकर 0.9 बिलियन डॉलर रहा फॉरेन पोर्टफोलियो इनवेस्टमेंट के तहत नेट इनफ्लो वित्त वर्ष 24 की पहली तिमाही के 15.7 बिलियन डॉलर से घटकर 0.9 बिलियन डॉलर रह गया। वित्त वर्ष 25 की पहली तिमाही में भारत में एक्सटर्नल कमर्शियल बॉरोइंग (ECB) के तहत नेट इनफ्लो 1.8 बिलियन डॉलर रहा, जो एक साल पहले इसी अवधि में 5.6 बिलियन डॉलर से कम था। करंट अकाउंट डेफिसिट वित्त वर्ष 2025 में 1% से ज्यादा रहने की संभावना एक्सपर्ट्स का कहना है कि करंट अकाउंट डेफिसिट वित्त वर्ष 2025 में 1% से ज्यादा रहने की संभावना है, जबकि पिछले साल यह 0.7% था। हालांकि, इसके 2% से नीचे रहने की उम्मीद है। बैलेंस ऑफ पेमेंट की बात करें तो ग्लोबल इंडाइसेज में भारत के शामिल होने से कैपिटल इंपोर्ट्स से इकोनॉमी को मदद मिलने की उम्मीद है। करंट अकाउंट डेफिसिट क्या होता है? यह किसी देश के टोटल इंटरनेशनल व्यापार का रिकॉर्ड रखने वाले कंपोनेंट बैलेंस ऑफ पेमेंट का एक पार्ट है। इसके जरिए देश यह पता लगाते हैं कि उनके देश से विदेशों में बेची गई वस्तुओं से कितनी आमदनी हुई और विदेशों से सामान इंपोर्ट करने में उन्हें कितना खर्च करना पड़ा। अगर एक्सपोर्ट से कमाई गई आमदनी इंपोर्ट के लिए किए गए खर्च के मुकाबले कम होता है, तो इसे करंट अकाउंट डेफिसिट यानी चालू खाता घाटा कहते हैं। वहीं, अगर इंपोर्ट के लिए किया गया खर्च एक्पोर्ट से हुई आमदनी की तुलना में ज्यादा है तो इसे करंट अकाउंट सरप्लस कहा जाता है। इसे एक उदाहरण से समझते हैं… मान लीजिए देश ‘A’ ने ₹100 वैल्यू का ट्रेड किया। इसमें उसने देश ‘B, C और D’ से टोटल ₹60 की वैल्यू का इंपोर्ट किया और बदले में डॉलर दिया। जबकि देश ‘E,F,G और H’को ₹40 के वैल्यू का एक्सपोर्ट किया और बदले में डॉलर लिया। यहां देश A का ट्रेड बैलेंस यानी इंपोर्ट- एक्सपोर्ट के बीच का अंतर (60-40=20) ₹20 होगा। लेकिन, यहां देश A ने एक्सपोर्ट से ज्यादा इंपोर्ट किया है। इसलिए इसका ट्रेड बैलेंस नेगेटिव होगा यानी ₹20 के वैल्यू का ट्रेड डेफिसिट (व्यापार घाटा) होगा। CAD कम होने या बढ़ने के क्या फायदे, क्या नुकसान? करंट अकाउंट डेफिसिट का प्रभाव देश के इकोनॉमी, स्टॉक मार्केट और इन्वेस्टमेंट पर सीधा होता है। इसके कम होने पर यानी अगर इंपोर्ट की तुलना में एक्सपोर्ट ज्याद है, तो इससे देश में निवेश करने वालों का कनफिडेंस बढ़ता है और वो ज्यादा इन्वेस्ट कर पाते हैं। इससे फॉरेन एक्सचेंज रिजर्व बढ़ने के साथ-साथ लोकल करेंसी की वैल्यू बढ़ती है। वहीं अगर CAD ज्यादा है, यानी एक्सपोर्ट की तुलना में इंपोर्ट ज्यादा हुआ है, तो इस स्थिति में इसके उलट परिणाम होते हैं।
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